आदर्शों की ऊँचाई हैं मेरे पिता, नैतिकता की परछाईं हैं मेरे पिता, अनगिनत दुख-शोक-व्याधि झेलकर बने नीलकण्ठ विषपायी हैं मेरे पिता। पितृहीन होकर कि…
Read more »सियासत में जो बरसों से पड़े हैं समझ लीजे कि वे चिकने घड़े हैं ब स इक अपना ही कद है सबसे छोटा …
Read more »जो सामने नदी हो तो अधर पे प्यास भी हो न उधार की ख़ुशी हो सचमुच की ज़िन्दगी हो हर दिल में …
Read more »कोयल कूके बदरा छाए बोले मोर पपीहा.. सर्दी बीती गरमी बीती बीता बारिश का महीना ऐसे में कब आओगे स्वामी बार बार बस पूछे मेरा मनवा .. एक दिन…
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