बीते हुए बचपन की गवाह हैं, मेरी गलियाँ अब भी लिखती हैं, वह मेरी सलामती की चिट्ठी देर रात बैठकर जब सो जाता है पूरा शहर खामोशी की चाद…
Read more »किताबों के साथ-साथ पढ़ता हूँ , मैं वो तमाम चेहरे जो भीड़ में इस तरह खो गये जैसे खनकते हुए सिक्के! कुमार पवन कुमार ‘पवन’ असिस्टेंट प…
Read more »रो देती हैं जब औरतें पिघलकर बह जाता है सारा दुःख लावा की तरह धरती की गोद में बिलख पड़ता है बारिश के रूप में बादल एक पिता की तरह! कुमार…
Read more »कभी -कभी मैं बिल्कुल अकेला हो जाता हूँ पेड़ की उस डाल की तरह जिसके पत्ते अभी-अभी गुजर गये बिना किसी शोरगुल के और अपने पीछे छोड़ आये ह…
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