रात्रि के तीसरे पहर निकला उसे तलाशते हुए गांव- नगर की सीमा पार करते हुए दूर कोसों दूर ... निर्जन जंगलों व पर्वतों के बीच मिली लेटी हु…
Read more »छंद पर छपी थी उनकी अनेक पुस्तकें फूंक नहीं पाए एक भी छंद में प्राण। वास्तु की बारीकियां देखने वाले नहीं बना पाते सपनों का महल। नौ सौ पच्चीस…
Read more »ये कैसा गुबार है छाया मन पर उदासी का है मंज़र तन मन पर फंसे हैं मुश्किलों की मझधार में जीवन को किस ओर ले जायें इस दुनिया संसार में …
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