मौसम की तरह आप यूँ ना बदला करो आ जाओ लौटकर अब यूँ ज़िद्द ना करो।। हो रही देर अब यूँ न रुसवा करो मुँह से कुछ तो कहो चाहे शिक़वा करो।…
Read more »कविताएं बनाई नहीं जाती , बल्कि निकल आती हैं, जैसे हिमालय के हृदय रूपी ग्लेशियर पिघलते हैं, तो नदियों के रूप ले , धरा के अंत्स्थल को छू कर, …
Read more »खोलो यादों का दफ्तर करते हैं कुछ चटर पटर दोपहर की कितनी यादें दोस्तों संग करते थे बातें मम्मी जब सो जाती थी तब सहेली आ जाती थी कंकड…
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