प्रभात के प्रथम प्रहर में , सोते जागते इस शहर में, चिड़िया जब चहचहाती क्यों कोई याद आता है ? दोपहरी की अलसाई में , नितांत एकल तन्हाई में, …
Read more »मन मेरा बावला है सखी! माने ना, इत- उत उड़ जाए... मैं भागूँ पीछे- पीछे इसके, हाथ मेरे ये कभी ना आए...! कब भला ये किसी की सुनता है, नित …
Read more »अंजन मसि से लिखूं मैं पाती, तुम बिन मन रुदन करता बाती, आ जाओ जल्दी मेरे प्रियवर साथी, तुम बिन सूनी हो गई मेरी राती। हृदयतल में बसी है त…
Read more »दे दो रँग मुझे, बुन लूँ सपने रँग-बिरंगे सजा लूँ अपना जीवन , रँग लूँ अपनी दुनिया रँग डालूं अपना तन-मन दे दो रँग मुझे खींच लूँ …
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