हरे - हरे सखुए के पत्तल, याद हैं मुझे, खाई है जिसपर मैंने जलेबियाँ, आते थे बनकर दूर के, पहाड़ों में बसे गाँव से, टूटी सड़कों और पगडंडियों…
Read more »आदमी का गम नहीं बिकता, आदमी की हँसी बिक जाती है; गम के खरीददार नहीं मिलते, हँसी, हँसते-हँसते खरीदी जाती है। खुशी के सौदागर बहुत है, द…
Read more »एक इंसान मर गया मुझमें, जिसको जिंदा देखा था मैंने कभी; कुछ भग्नावशेष बाकी बचे, पाषाण ही पाषाण है मुझमें अभी; लोगों ने नजरें बदली, नजरिये …
Read more »अपनों ने अपनों को धोखा दिया, अपनों ने रखा अपना ही ध्यान । अपनों के अपने चक्कर में ही, अपनों का हो गया काम तमाम। अपनों का हो गया काम त…
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