नारी एक सृष्टि की सृजना, नारी एक, रूप अनेक में , नारी ही धात्री ,नारी ही पालक, नारी ही लक्ष्मी,नारी ही काली, नारी ही गंगा, नारी ही गाय…
Read more »क्या हो गया है आदमी को वो बैचेन क्यों है ? क्या कहीं कुछ दिखने लगा है क्या कुछ और बिकने लगा है वो लालायित क्यों है क्यों उठ र…
Read more »पुरानें घर में भारत की, पूरी पहचान मिला करती थी। ओ से ओखली क से कलम, स्याही की दावात मिला करती थी।। संस्कार की पूरी पाठशाला, घर में ही मिल जाती थ…
Read more »चलते थे जो कभी संग हमारे, बन गए वो आकाश के तारे, अश्रुपूरित नयन हमे दे कर, ईश्वर के ही हो जाते प्यारे।। चलती रहती फिर भी जिंदगी, सुख दुःख संग संग ह…
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