उसको अपनी कहानी बता न सका उस पे हक भी अपना जता न सका जब उसने बताया मुझे कुछ जरा मैं उसके कहे को पचा न सका बूंद ऐसी गिरी लचीली शाख से उसकी शोख…
Read more »करू–करू लोगन के बोली, मोला अब्बड़ रोवाथे। कच्चा लकड़ी कस गुँगवावत, अंतस के पीरा सहिथँँव, बैरी होगे ये दुनिया हर, …
Read more »वो शाम कुछ अजीब थी ……! रात के क़रीब थी । रात गहरा रही थी शायद कुछ बता रही थी । इस ढलती रात में समेट रही थी कुछ ख़्वाब । ढूँढ रही थी मैं उन्हें इध…
Read more »गांव के सरहद वाली पगडंडी ही तब एक कोस दूर वाली बड़की पक्की सड़क पर ले जाती थी तब जाकर पास के बाजार या शहर जाने को सवारियां मिल पाती थी. कल की प…
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