सिसक रही मानवता देखो अँसुवन धार बहाए माँग रही दो बूँद नेह की आँचल को फैलाए पथ भूले पथराए जग को प्रेम ही राह दिखाए सहज हुईं मुश्किल राहें जब प्र…
Read more »अपने कर्तव्य के प्रति समर्पण से, महकता है शिक्षा का मंदिर। अपने कार्य और जिम्मेदारी का बोध, हो मन के अंदर। आत्म संतुष्टि ही है, सबसे बड़ा सम्मान।…
Read more »नहीं वह सम्मुख अचरज की न बात मेरी व्यथा से है विमुख मन पर कुठाराघात| मेरी व्यथा का रहा न भान भूल गए मेरा त्याग बलिदान सारी कामनाएं अधोगति को प्राप…
Read more »जिंदगी वही की वही रह गई जहा से शुरु वही ख़तम हो गई सुबह से अब धीरे धीरे शाम हो गई रात बीती और अब सुबह हो गई ।। जिन्दगी आज अब औ कल हो गई न जाने क…
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