मेरे घर की मुँडेर पर, भोर एक गौरैया आती। प्याले में रक्खे दानों को, चूँ-चूँ करती खाती जाती॥ उड़ जाती वो बिना बताये, अंबर में जा कर छुप जाती। न जाने…
Read more »माह फरवरी आतुर है मन, धरा प्रेम बरसाई, सुरभित गुलाब की पंखुड़ियाँ, शूल मध्य इठलाती। देख दृश्य पुलकित है कण-कण, कोयल गीत सुनाती।। पात–पात तरुवर झूमे ज…
Read more »उत्तरायण को रवि चढ़ा , अस्त हुआ सर्दी का सूरज | मंद मंद बयार चली उड़ाती, गलियों खलिहानों की रज || आंगन के वृक्ष उदास खड़े, सुकोमल पात वसुधा पर पड़े …
Read more »धरा का घर, हर किसी का, जड़- चेतन सब, है इसी का, मानव जाति, पशु- पक्षी सब पेड़ पुष्पों से, रहित है कब, सुंदर पृथ्वी, माँ हमारी, …
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