उलझती गई जिन्दगी बदनसीबी रूलाती चली गई। दावा करते थे जो मददगार होने का उन्हीं के हाथों सताती चली गई। हर गिरह ऐसी बंधी कि खुलने का नाम न ले खुल…
Read more »क्यों हुआ निराश तू, सफर से ओ मुसाफिर | ये तो वो लम्हा है, जो यूं ही गुजर जायगा || मंज़िल जब होगी हांसिल , यकीनन | तुझे बस ये तेरा सफर ही याद आएगा ||…
Read more »एक घने कोहरे से, गुजर रहे है हम इन दिनों | नजरों के सामने होकर भी, नजर वो आते नहीं || दो कदम बढ़ाकर रुक गए वो, और हम चलते रहे | जो ठहर जाते हम भी, तो…
Read more »आज फिर से प्रेम की उन गलियों में, जाने को जी चाहता है तेरे पास आकर तुझे, गले लगाने को जी चाहता है, तड़पाती है तेरी यादें मुझे हर पल जानॉं बस एक बार …
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