ख़ाली हाथ नहीं हूँ फिर भी ना जाने क्यूँ …..! कुछ ढूँढती रहती हूँ अपने हाथों की लकीरों में जो चाहा ,बढ़ कर पाया । फिर भी ना जाने क्यूँ……! कुछ तलाशती र…
Read more »ऐ, सांस थोड़ा धीमे चलो न, अभी ढ़ग से जीये ही कहां है| अभी प्रतीक्षा में है मेरी आंखें अभी संयोग की रैना बाकी है| अधुरे है अहसास अभी मेरे, आशाओं…
Read more »कम पड़ेगा बादलों का गाँव सारा एक मुट्ठी ओस लेकर क्या करेंगे प्राण प्यासे हैं हमारे कोख से ही जी रहे सदियों पुराना घाव लेकर खो गया सू…
Read more »तेरे हिस्से की चाँदनी, गर होती मैं इक बार। नील गगन ले जाती तुझको, अपने पंख पसार। या कहीं पर बैठ किनारे, श्वेत छीर सागर के तट। चाँदनी भर लेती मु…
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