वसन- हीन हो देहालिंगन प्रेम नहीं है ध्यान रखें। देह -देह का परिचय होना कहलाता है भोग सखे।। इस परिचय का जीवन कितना देह संग ढल जाता है। आत्मिक- मिलन चि…
Read more »वह भी क्या दिन थे जब मेरी कलम रूकती ही ना थी बस तुझे ही लिखती रहती थी मेरे हर लफ्ज में तुम ही तुम तो थे कलम की स्याही के हकदार सिर्फ तुम ही तुम…
Read more »किसने छेड़ी तान सखी घर कौन आया है । विहसे मन आज सखी क्या सावन आया है ।। कजरी गाते खग विहग केकी ता था थैया । थाप सुनाये दादुर क्या सावन आया है ।। …
Read more »ख़ाली हाथ नहीं हूँ फिर भी ना जाने क्यूँ …..! कुछ ढूँढती रहती हूँ अपने हाथों की लकीरों में जो चाहा ,बढ़ कर पाया । फिर भी ना जाने क्यूँ……! कुछ तलाशती र…
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