कभी-कभी बचपन के दिन बड़े याद आते, घूमा करते थे ईद गिर्द, चिड़िया गुरसल कौवे, उनको गिन कर लगाते थे अंदाजा, आएगा कोई मेहमान,चिट्ठी या लिफाफा, ची ची क…
Read more »ज़ाद परिन्दा हूँ मैं,मुझे तो आसमान तक जाना है, ना रखो चारदीवारी में मुझे कैद,मुझे तो उड़ जाना है.. समाज को कोई हक नहीं मेरी आजादी छीनने का, मुझे प…
Read more »कान में डालो रुई, या बंद कर लो द्वार घर के। युग-युगान्तर साक्षी हैं, सत्य के निर्बाध स्वर के।। पाँव ही होते नहीं तो, झूठ के पदचिह्न कैसे? जो न…
Read more »हारकर न हो तू कभी उदास, कर पुनः अथक प्रयास! ये जंग आख़िरी जंग नहीं, जीवन के हर मोड़ पर... आते नित नए जंग है! रख हौसला, मत भूल तेरे अपने भी तेरे संग है!…
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