लहनदार भट्टी से निकलने वाली आग की लाल चिन्गारियों के बीच लोहा और पत्थर कूटने वाले बन्जारों को कभी आपने देखा है चलिए, छोड़िए, आपके पास वक्त ही कहां है…
Read more »सुनो! हर धड़कन मेरी तुम्हें पुकारे हम तो हे प्रियतम ! तेरे नाम हुए। दूर होकर तुम से जले हैं ऐसे कि! मेरे तन -मन ,सब श्मशान हुए।। बसकर तेरी…
Read more »वो आज की स्त्री है विरोध करती है तुम्हारी बातों का, क्यू कि बस हां में हां करना नहीं सीखा उसने ठीक है तुम उसके अपने हो पर उसका अपना वजूद भी है उसके…
Read more »अंधकार पर जीत हित, जलते दीप सगर्व। देता जय - संदेश शुभ, दीपावलि का पर्व। 'तमसो मा ज्योतिर्गमय', सारस्वत युग - धर्म। सद्प्रवत्तियों से जु…
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