अवनी के अस्तित्व में आकर, जीवन-वायु उपहार दान कर, शपथ परोपकार का धर कर, स्थित हूँ अविचल मैं तरुवर। कहीं नभचुम्बी गिरीशिर…
Read more »न चौबारे, न नुक्कड़, न सफ़र में रहो! वक़्त का तकाज़ा है ज़रा घर में रहो! हवा कातिल है परिंदो तुम्हें मालूम हो, …
Read more »भीड़ में अकेली थी मैं, तूने अपने वजूद का आभास दिया, जब हारकर गिरने लगी मैं, तब तूने ही जीत का विश्वास दिया, कैसे कह दूं कुछ नहीं दिया…
Read more »जवानी से गुफ्तगू करें, बचपन की यादें, वहीं बुढ़ापे को याद आये, जवानी में किए वादे। आगे बढ़ते कदम हर बार रुकते हैं मुड़ते हैं और पीछे देखत…
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