प्रयाण गीत

अरुणिता
द्वारा -
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(तूणक छ्न्द में)


कामना करो कि नव्यता सदा बनी रहे।

देश में विनीत सभ्यता सदा बनी रहे।।

सादगी समेत भव्यता सदा बनी रहे।

स्वर्ग सी अनिन्द्य दिव्यता सदा बनी रहे।।


हाँ इसीलिए उठो विकास के लिए चलो।

माधुरी बनी रहे मिठास के लिए चलो।।

द्वार - द्वार हो उठे उजास के लिए चलो।

एक बार ही सही प्रयास के लिए चलो।।


जो न आ सकें उन्हें पुकारते चले चलो।

जो दबे हुए दिखें निखारते चले चलो।।

जो गिरे हुए मिलें उबारते चले चलो।

हीन भाव जो रखें दुलारते चले चलो।।


काम-क्रोध लोभ द्वेष-दम्भ को पछाड़ दो।

रूढ़िवाद की जड़़ें समाज से उखाड़ दो।।

वक्त आ गया कि दुष्ट मित्र को लताड़ दो।

शत्रु शक्ति को विवेक से यहीं उजाड़ दो।।


सिंह हो सियार या कि सामने बिलार हो।

एक दो हजार पार भीड़ बेशुमार हो।।

धार हो कछार खार थार या पठार हो।

हो खड़ा चढ़ाव या सपाट सा उतार हो।।


भ्रष्ट हो चुके उन्हें सुधारते चले चलो।

बुद्धिमान बन सको विचारते चले चलो।।

मित्र बन्धु से सदैव हारते चले चलो।

किन्तु शत्रु-शक्ति के गले उतारते चलो।।


आप हो जवान वीर साहसी अदम्य हो।

धीर - वीर कर्मशील पारखी अगम्य हो।।

ध्यान ये रहे कि भूल-चूक नित्य क्षम्य हो।

होअनाथ भी सनाथ साथ सौम्य रम्य हो।।


धर्म से विकास का सटीक तारतम्य हो।

वीथिका सुगम्य और वाटिका सुरम्य हो।।

वृद्धि यों करो कि बाल-वृद्ध ज्ञानगम्य हो।

हो हरेक भारतीय देव सा प्रणम्य हो।।


लो मशाल हाथ में विचारते चले चलो।

स्वाभिमान से धरा बुहारते चले चलो।।

भाव राष्ट्र - भक्ति के उभारते चले चलो।

देश की दशा - दिशा सुधारते चले चलो।।


कौन है अबोध और क्या कहाँ निदान है।

कौन है प्रबुद्ध शुद्ध कौन ज्ञानवान है।।

कौन है कलानिधान कौन नौजवान है।

कौन जो मयंक के कलंक सा निशान है।।


आस-पास घूम-घाम ठीक-ठाक जान लो।

जानकारियोंभरी क़िताब की कमान लो।।

कौन देश-भक्त कौन काम का सुजान लो।

कौन देश-द्रोह में लगा हुआ निशान लो।।


भाव पूर्ण आरती उतारते चले चलो।

राग क्या विराग को सँवारते चले चलो।।

प्रेम के प्रताप को पसारते चले चलो।

कामना निजी हजार मारते चले चलो।।


निर्मला नदी हरेक झील हो तड़ाग हो।

बाग हो हरा - भरा प्रसून हो पराग हो।।

शान्त सूर्य से सजा विहान हो विहाग हो।

शिष्टता भरा हुआ नवीन गान राग हो।।


मातृभूमि के प्रभाव के लिए चले चलो।

हो न बाहरी दबाव के लिए चले चलो।।

हो नहीं कहीं अभाव के लिए चले चलो।

देवता! किसी सुझाव के लिए चले चलो।।


जागते रहो सदा यही उचारते चले चलो।

भ्रष्ट राजनीति को नकारते चले चलो।।

शिष्टता पसार पाँव धारते चले चलो।

डूबते जहाज को उछारते चले चलो।।


चले चलो चले चलो चले चलो चले चलो।

चले चलो चले चलो चले चलो चले चलो।।


गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" 

इन्दौर, मध्य प्रदेश 

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