जब से शहर की एक मासूम बच्ची का दरिंदगी से बलात्कार हुआ है तब से मैं सोशल मीडिया पर बहुत व्यस्त हो गयी हूँ. बच्ची को न्याय दिलाने, बलात्कारियों को फाँसी पर लटकाने और पुलिस प्रशासन को नाकारा साबित करने की ढेरों पोस्ट डालकर उनपर बढ़ते लाइक/कमेंट्स की संख्या देखकर खूब खुश हो रही हूँ. सुबह चाय पीते वक्त देर रात डाली गयी पोस्ट "शहर की बिटिया को इंसाफ मिलना ही चाहिये" पर आये लोगों के कमेंट्स पढ़ रही थी तभी उस बलात्कार पीड़िता बच्ची की हमउम्र मेरी बेटी का कमेंट..." मम्मी, अगर मेरे साथ भी इस लड़की की तरह इतनी दरिंदगी से सामूहिक बलात्कार हुआ होता तो क्या तब भी आप इसी तरह पोस्ट डालकर लाइक/कमेंट्स देख रहे होते ? क्या आपने उस लड़की की पीड़ा को मन से महसूस करके सच्चे भाव से उसे श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये यह प्रार्थना करी कि जल्दी से जल्दी दोषियों को सजा मिले"
यह पढ़ते हुए मोबाइल में उस बच्ची के चित्र की जगह मेरी बेटी का चित्र उभर आया यह देखकर मेरा मन चीत्कार उठा,आँखों से ज्वाला फूट पड़ी, उन वहशी दरिंदों के प्रति क्रोध की चिंगारी भड़क उठी मैं अथाह वेदना से कराह उठी, " मेरी बेटी". तब मुझे अपने अंदर अपनी बेटी की पीड़ा, दरिंदों के चंगुल से छूटने के लिए छटपटाहट, चीखें और उसका करुण रुदन महसूस हुआ... मेरी अंतरात्मा से एक गगनभेदी चीख गूँज उठी, " हे ईश्वर, जल्दी से जल्दी इन बलात्कारियों को फाँसी की सजा मिले तभी मुझे सुकून मिलेगा".
डॉ. अनिता राठौर मंजरी
आगरा, उत्तर प्रदेश