तेरा इश्क दिल में, बताऊं मैं कैसे!
इजहारे- ए- इश्क, करूं मैं कैसे?
आंखों मैं बसकर भी अदृश्य रहे हो!
सुकून - ए - कल्ब हो तुम! तुम्हे देखूं मैं कैसे।
न मेरे महबूब, कभी तुमको लिखा!
जो लफ्ज़ ही नहीं है, सुनाऊं मैं कैसे?
कभी तुझसे दूर मैं, कभी मुझसे दूर तू ,
अपने बीच ये दूरियां, मिटाऊं मैं कैसे?
तु मुझे बस अपना, रहनुमा मानती है।
किन्तु तूं है मेरी राधा, बताऊँ मैं कैसे!
तेरी सारी मजबूरियां, भी मै देखता हूं।
पर अपने आपको, समझाऊं मैं कैसे!
है तेरी रज़ा ही, जो हम ना मिले हैं।
तो तेरी रज़ा को नमुकम्मल होने दूं कैसे!
मेरी तो रूह मै है, तेरा रूप राधा!
इसे छोड़ कर पास, आऊँ मैं कैसे?
शिवांश पाराशर "राही"
सागर, मध्यप्रदेश