चिर नींद नहीं.. चिर साथ मिले!
नव दिवस... नया उत्साह मिले!
खोने की! मिट जाने की! अभिलाषा क्या?
जीवन साथी! जीना क्या! मर जाना क्या!
आखिर की सांस तक!
साथ रहे यह भाव बड़ा!
जीने को! चल पड़ने को! उत्साह बना!
जिस मधुर सुबह को याद किये!
खुद को पाए!
निस्वार्थ प्रथम! यह भाव जगा!
दो पद गाये!
आशीष "दीया" का!
साक्ष्य बना करुणालय है!
ये भाव बड़ा उद्यत करता!
कोलाहल है!
आखिरी क्षणों में मिलने की अभिलाषा कर!
वो कौन विषम! जो बीच राह रह जाता है?
खुद स्नेह सदा बरसाती! तेरी वाणी है!
मेरी यह बातें! खास नहीं! बेमानी हैं!
कर्तव्य बोध का बोझ बड़ा बेमानी है!
कर्तव्य बोध का बोध बड़ा बेमानी है!
डॉ० सत्यप्रकाश
वाराणसी, उत्तर प्रदेश