अवनी के अस्तित्व में आकर,
जीवन-वायु उपहार दान कर,
शपथ परोपकार का धर कर,
स्थित हूँ अविचल मैं तरुवर।
कहीं नभचुम्बी गिरीशिरा पर,
कहीं सरोवर, जलधि तट पर,
स्वार्थ, दम्भ, ईर्ष्या से हटकर,
स्थित हूँ अविचल मैं तरुवर।
भूमि के जल को संचित कर,
उष्ण समीरों को शीतल कर,
वर्षा, जलधर आकर्षित कर,
स्थित हूँ अविचल मैं तरुवर।
बुद्धिजीवी का आदर पाकर,
अधमों के घातों को सहकर,
अंतत: जीव हेतु मैं हितकर,
स्थित हूँ अविचल मैं तरुवर।
आकाश श्रीवास्तव,
पता- जी-श्याम नगर, कवर्धा,
जिला- कबीरधाम(छत्तीसगढ़)
मो.न.- 8109410369