आओ बातें करें
दुनिया एक रंगमंच है | सभी को अपने-अपने हिस्से की भूमिका अदा करनी होती है | फिर लौट जाना होता है उसी सर्वशक्तिमान के पास जो सभी का उद्गम का | लेकिन पृथ्वी पर मनुष्य की जीवन-यात्रा अन्य जीवों की तरह नहीं होती | मनुष्य का ह्रदय केवल शारीरिक यन्त्र की तरह ही कार्य नही करता अपितु इसमें पनपती हैं ढेर सारी भावनाएँ | कभी प्रेम, कभी घृणा, कभी अवसाद तो कभी क्रोध | सत्य ये भी है कि यदि मनुष्य इन भावनाओं से घिरा न रहे तो उसके लिए अपना जीवन व्यतीत करना मुश्किल हो जाए | वो मनुष्य ही है जो अपनी शारीरिक आवश्यकताओं से अलग जाकर भी बहुत कुछ सोचता है | उसका मस्तिष्क सदैव कुछ न कुछ चिन्तन-मनन करता ही रहता है |
मनुष्य न केवल स्वयं के प्रति वरन अन्य मनुष्यों के प्रति भी बहुत संवेदनशील है | और मनुष्यों के ही क्यूँ ? वो अन्य जीवों के प्रति भी कुछ न कुछ भावनाएँ अवश्य रखता है | वो नदियों और पर्वतों से भी अपनी भावनाओं को जोड़ लेता है | ये मानव मन की भावनाएँ ही हैं जो कभी उसके दुखों का कारण बनती हैं तो कभी उसके जीने का सहारा | इन्ही भावनाओं को व्यक्त करने के उसने कई माध्यम भी विकसित कर लिए हैं जैसे कला, संगीत और लेखन आदि |
लेखन का क्षेत्र बहुत व्यापक है | इसके माध्यम से हम अपने मन की बात सरलता से दूसरों तक पहुँचा सकते हैं | गीत, कविता और कहानियाँ आदि हमें उनके रचनाकारों से जोड़ देती हैं | ‘अरुणिता’ भी रचनाकारों को पाठकों से जोड़ने का ही एक उपक्रम है | हमें आशा है कि ‘अरुणिता’ आपके मनोभावों को दर्शाने का एक निर्मल दर्पण सिद्ध होगी | आपकी प्रतिक्रियाओं की हमें प्रतीक्षा रहेगी | ‘अरुणिता’ के अगामी अंकों को रोचक और आकृषक बनाने के लिए अपने सुझाव अवश्य प्रेषित कीजिये |
जय कुमार
(सम्पादक)