मानव बनकर इस धरती पर
तुमने जन्म लिया है ,
अन्न यहां का खाया तुमने
सुधा सम नीर पिया है ।
पर रहते हो लिप्त निरंतर
स्वार्थ साधना मन में ,
क्या समाप्त कर लिया है तुमने
स्व कर्तव्य जीवन में?
हर पल बस निज स्वार्थ हेतु
तुम तो चिंतन करते हो,
खाते-पीते हंसते गाते
खुशी चैन भरते हो ।
इस जग के चर अचर सभी ने
गर धरती पर जन्म लिया है,
धुन है एक ना एक सभी को
सबने कर्म किया है।
तुम मानव हो अमित बुध्दिबल
तुमको यहां मिला है,
क्यों उद्देश्य पुष्प तुम्हारे
मन में नहीं खिला है?
त्यागकर निज स्वार्थ तुम्हें
कर्तव्य पथ पर चलना होगा,
मानवता के ऋण से तुमको
उऋण होना होगा।
डॉ० मीनाक्षी गंगवार
प्रधानाचार्या,
राजकीय बालिका हाई स्कूल सोहरामऊ
उन्नाव