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बचपन

 भागादौड़ी बहुत सह लिया

किस उलझन में पलते हैं

मेरे प्यारे मन चल अब तो

फिर बचपन में चलते हैं

मेरे प्यारे,,,,

              पलने में  झूलेंगे फिर से

पैर पटककर फिर रोयेंगे

माँ का अमृत दुग्ध पियेंगे

बस मस्ती में सोयेंगे

  कुल दीपक बनकरके फिर से

अपने घर में जलते हैं

मेरे प्यारे,,,,,,,

गुड्डे गुड़िया मिलकर खेलें

सुनें कहानी नानी की

चोट लगी तो माँ रो देती

उन आँखों में पानी की

अच्छी अच्छी सीखें सुनलें

फिर से आज सँभलते हैं

मेरे प्यारे,,,,,,

नोकाझोंकी खेल में होती

खींचें हम फिर उसकी चोटी

अपना अपना खेल खिलौना

रखने की क्या हिकमत होती

अलमारी में सबसे नीचे

              अपनी दुनियाँ रखते हैं

              मेरे प्यारे,,,,,,,,

पढ़ने लिखने में अलसाते

भले पिताजी से पिट जाते

दादी के आँचल में छुपकर

डंडे खाने से बच जाते

भोजन का डिब्बा लेकर अब

स्कूलों में चलते हैं

मेरे प्यारे,,,,,,

सहपाठी कोइ चंचल सी

मुझको प्यारी लगती है

उसकी खातिर मेरे मन

उत्सुकता सी रहती है

उसकी कापी में चुपके से

शेरो शायरी लिखते हैं

मेरे प्यारे,,,,,

अपनी बेबाकी जुबान से

स्तुतियाँ प्रभु की गायें

सुनकर बड़े बुजुर्गों का मन

पुलकित हमपे हो जायें

सारी यादों को रंजन अब

आज संजोकर सिलते हैं

मेरे प्यारे,,,,,

                           आलोक रंजन