आज मन द्रवित है , चारों तरफ डर एक भयानक रूप लेता जा रहा है। आज चारों तरफ कोरोना के ही चर्चे चल रहे हैं ठीक 2020 की तरह पर उस समय यह कुछ नया सा था , यह बिलकुल नए मेहमान की तरह था । लॉकडाउन लगा ,सबने सहयोग किया । किसी न किसी रूप में सबको डर था कि ये है क्या ! इसके चलते सबने सावधानी से काम लिया लेकिन जैसे ही हम अपने दवाइयों और दुआओं दोनों में सफल होने लगे वैसे ही हमने लापरवाहियाँ दिखानी शुरू कर दी, सबको देख कर तो ऐसा लग रहा था कि ठीक दो चार महीने पहले कुछ हुआ ही नहीं ! अभी सबने अपने मास्क व आवरण निकाल कर अपनी बेपरवाही दिखनी शुरू ही की थी तब तक फिर कही से आवाज़ आयी , "अरे ! वापस अपने घरों में रहने को तैयार हो जाओ , वो बीमारी तो फिर से फैलने लगी ।"
फिर भी सुनेगा कौन...? सब तो अपनी दुनिया में मस्त हैं ये सोच कर की वैक्सीन तो आ ही गयी अब हमारा कोई क्या बिगाड़ेगा !
यही सोच कर की अब सब कुछ सही हो चला है सबने अपनी रफ़्तार पकड़ ली , घरों में वैवाहिक माहौल वापस से छाने लगे , बच्चे फिर स्कूल जाने लगे पर ऊपर कही बात पर किसी ने थोड़ा भी ध्यान न दिया कि "...बीमारी फिर से फैल रही है!" जनता तो दूर की बात है सरकार तक ने इस बात पे ध्यान न दिया और रैलियाँ , होली समारोह आदि उत्साहों का ऐलान कर दिया और तब तक कोरोना ने भी सबके राजनैतिक वर्चस्व को बनाने और तोड़ने की प्रक्रिया पर एक ज़ोड़दार हथौड़ा दे मारा। उस हथौड़े की मार ऐसी पड़ी की सब फिर बौखलाए घूम रहे हैं पर क्या मजाल है कि अब भी सावधान हो जाये । क्योंकि या तो आप प्रकृति को सही से सम्भालें वरना प्रकृति खुद को संभाल लेगी तो आपने तो प्रकृति को संभाला नहीं तो प्रकृति ने स्वयं ही यह कार्य करना शुरु कर दिया , अब प्रकृति जब सम्भलेगी तो विनाश तो तय है ।
आज हमारी लापरवाही का परिणाम हमारे सामने है ..शमशान में चिताओं की आग ठंडी नहीं हो पा रही , लाशें जलाने को लकड़ियाँ कम पड़ जा रहीं , चिमनियाँ गल जा रहीं फिर भी इन बेपरवाह मनुष्यों को दिखाई नहीं दे रहा या कोई देखना ही नहीं चाहता ?
आज बैठे - बैठे यही आभास हो रहा है कि क्या सच में पृथ्वी का विनाश तय है या कुछ अच्छा होने से पहले बुरा होता है ? या हम ये सोच लें कि हमारे पालनकर्ता भगवान विष्णु पुनः इस पृथ्वी पर अवतरित होंगे भगवान "कल्कि" के रूप में जैसा की हमारे धर्मग्रंथों में लिखा है कि ''कलयुग "और "सतयुग "के संधिकाल में भगवान विष्णु कल्कि के रूप में एक ब्राह्मण के घर में जन्म लेंगे और पृथ्वी पर बढ़ रहे पापों का नाश और एक नए युग का आरम्भ करेंगे ।''
इसी इंतज़ार में शायद हम अपने आप के साथ - साथ अपनी कलम को भी समझा रहे हैं।
काश मेरी ये बात ज़्यादातर लोगों के पास पहुंचे और लोग अपनी गलतियों को अभी भी सुधार लें ।
प्रियंका पाण्डेय 'त्रिपाठी'
ग्राम-कुसम्ही, पोस्ट-तेनुआ
जिला-गोरखपुर