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हर हार को जीत में बदल देंगे










 क्यों तुमने हमेशा से, मुझको ख़ुद से कम ही आंका,

क्यों मेरे मन के अंदर, तुमने कभी भी नहीं है झांका,

  क्यों मेरे अंदर पलते सपनों को, कभी अपना ना जाना,

क्यों मेरे मन की वेदना को, कभी भी तुमने ना पहचाना,

 घूंघट की ओट में, क्यों हमेशा ही मेरा अस्तित्व छुपाया,

मुझसे बेहतर तुम हो, क्यों ऐसा अपना व्यक्तित्व दिखाया,

  क्या डरते हो तुम, कहीं नारी तुम पर ना हो जाए हावी,

शोला ना बन जाए कहीं, जिसे समझते रहे तुम चिंगारी,

ना मैं शोला हूँ ना ही चिंगारी, मैं तो हूँ केवल एक नारी,

सर्व गुणों को समेटे अपने में, तुम जैसी ही प्रतिभाशाली,

स्वयं ही स्वयं को, शायद मैं कभी पहचान नहीं पाई थी,

इसीलिए सदियों से मैं, पुरुष के पीछे ही चलती आई थी,

आज स्वयं को जाना, अपनी क्षमता को मैंने पहचाना है,

पुरुष के पीछे नहीं, कदम मिला कर चलना ये जाना है,

साथ चलने में ही, परिवार, समाज और देश की भलाई है,

नारी ने चारदीवारी से निकलकर, अपनी प्रतिभा दिखाई है,

साथ-साथ चलेंगे अगर, तो हर मुश्किल से हम लड़ लेंगे,

कुछ तुम संभालना, कुछ मैं, हर हार को जीत में बदल देंगे।

रत्ना पाण्डेय

वडोदरा, गुजरात