ओ सीमा पहरी
आकर राखी बँधवाले
तुझको देखे हुआ ज़माना
तरसें मेरे नैना
राखी के दिन भी क्या भैया
याद न आती बहना
माँ-बाबुल बोल रहे
जल्दी से टिकट कटा ले
कैसे बतलाऊँ, ओ बहना
मैं सीमा का पहरी
मेरी दोनों माँओं से है
प्रीत बड़ी ही गहरी
मेरी लाडो रानी
ख़त से राखी भिजवा दे
भैया मेरे जंग जीत कर
जल्दी से घर आना
दुश्मन को मत पीठ दिखाकर
कुल को दाग लगाना
मैं बाट निहारूँगी
ओ माटी के रखवाले
लिपट तिरंगे में आया है
वो बहना का भाई
राखी बाँध कलाई पर फिर
अन्तिम हुई विदाई
खुशियों पर उमड़ गये
ये बादल काले-काले
तेरे इस बलिदान पर भैया
वारी-वारी जाऊँ
नहीं मानता नर्म कलेजा
कैसे धीर बँधाऊँ
अब जाएँ ना भैया
नैनों के ताल सँभाले
भाई की ये कहे आत्मा
मत रो बहना प्यारी
अगले जन्म चुका दूँगा मैं
तेरी सभी उधारी
माँ पर फिर मिटने का
अवसर ढूँढे मतवाले
-सुनीता काम्बोज