जितना बच सको उतना खुद को बचाओ यारों
कि इल्तिजा है घर से बाहर ना जाओ यारों।।
गली गली ढूंढता फिरता अन्जान सा कातिल।
किसी पर्दे में इस चेहरे को छिपाओ यारों।।
दरम्याँ फासला रखना,वक्त का तकाजा है।
कुछ दूरियां हम,कुछ फासले तुम बढ़ाओ यारों
तेरे हाथों में इस जिंदगी की डोर है साथी।
लकीरे जिंदगी की खुद से ना मिटाओ यारों।।
सफर में रात है लेकिन,सवेरा भी कहीं होगा।
शमाँ हौसले उम्मीद की,दिल में जलाओ यारों।।
'धीर' चलना है तुम्हें,कर्म पथ पर बहुत आगे।
कि प्रश्न अस्तित्व का है,फर्ज निभाओ यारों।।
सुनील गुप्ता 'धीर'
B 119 सैकण्ड फलोर
गुरुटेक सोसाइटी रेवाड़ी
हरियाणा
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