समाचार पत्रों में और न्यूज़ चैनल के माध्यम से पश्चिम बंगाल और अन्य क्षेत्रों के चुनाव परिणाम दृष्टिगत हो रहे हैं. मुझे अच्छा लग रहा है.. एक वैज्ञानिक तथ्य बाहर निकला है कि कोरोना का प्रभाव राजनीतिक पार्टियों ने वोटों की संख्या में भी अनुभव किया है.
कोरोना महामारी एक त्रासदी है.. एक वैश्विक घटना है.. परंतु इस महामारी में पहले वाली सारी परिस्थितियों से अलग हटकर सोचने की जरूरत थी... पूरा 1 वर्ष का समय मिला था.
परंतु भारतवर्ष में न तो व्यक्तिगत और ना ही राजनीतिक दृष्टि से अतिशय गंभीर विषय को ढंग से स्वीकार किया गया. क्योंकि इस बीमारी का कोई खास प्रभाव बहुत सारे लोगों पर नहीं पड़ता इसलिए आम जनमानस भी इसको सही तरीके से नहीं लेती.
इस बीमारी का प्रभाव अलग-अलग व्यक्तियों पर अलग-अलग होता है. अगर मैं राजनीतिक दलों की बात करूं तो किसी भी राजनीतिक दल ने न तो इस वैज्ञानिक तथ्य को समझने की कोशिश की.. ना ही कोई स्ट्रिक्ट गाइडलाइन अपने कार्यकर्ताओं के द्वारा अनुपालन हो ऐसा सुनिश्चित किया. किसी भी राज्य में कागज से ऊपर ट्रेनिंग और पैरामेडिकल का कोई भी अतिरिक्त इंतजाम समय रहते नहीं किया जा सका.
आज 2 मई है और मुझे इंतजार था इस खबर का कि क्या इसका प्रभाव वोटों की गिनती पर पड़ रहा है या नहीं...मानवीय संवेदनावों को झकझोर देने वाला परिदृश्य दिखने के बावजूद, हम सभी लोग कर्म क्षेत्र के सिपाही की तरह अपने अपने काम को करते रहे और करते रहेंगे.
परन्तु सामान्य जनमानस के ऊपर इसका प्रभाव हर प्रकार से पड़ा है और उसने अपने निर्णयों में बार बार सोच कर, इसका मूल्यांकन करते हुए अपना वोट दिया होगा या फिर वोट दिए जाने से बचे होंगे. नतीजे किसी एक पार्टी के पक्ष में तो आएंगे ही, इसका मतलब नहीं कि वह राजनीतिक पार्टी कोरोनावायरस गाइडलाइन का पूरा अनुपालन कर रही थी, इसलिए उसको जनता ने जिताया है.
यह तो बात नहीं अब तक की रही. परंतु आज जिस तरह से पश्चिम बंगाल में कतिपय जीती हुई पार्टी के कार्यकर्ता उत्साह में दिख रहे हैं, इससे यह स्पष्ट है कि कोरोना एक समस्या उस पार्टी के लिए भी नहीं था, औऱ न ही वह इसको आगे बीमारी मानती है.
आज अनेकों चैनलों पर इसकी चर्चा हो रही है, कि इसका इसका प्रभाव वोट पर पड़ा है, और जिस भी दल ने हार की तरफ कदम बढ़ाया है, उसने कोरना महामारी को बढ़ाने में भी अधिक भूमिका निभाया है.
इसी बात को प्रश्रय देती हुई, आज एक वैज्ञानिक खबर भी मिली है. खबर में लिखी बातों ने मुझे यह अनुभव दिया है कि वैज्ञानिक दल ने अपनी विधिवत रिपोर्ट कोविड 19 के रोकथाम के लिए और इसको आगे बढ़ने से रोकने के लिए सरकारों को दे रखी थी. परंतु उस पर कोई सही कार्य नहीं हुआ.
इस विषय पर यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि किसी भी वैज्ञानिक टीम के द्वारा दिया गया कोई भी समीक्षा रिपोर्ट कभी भी पढ़ा नहीं जाता, औऱ उसका अक्षरश: अनुपालन भी नहीं होता है. इस तरह की कुछ टीम का गठन सिर्फ उन वैज्ञानिकों को एक उचित शोध करने के लिए तथा उनको किराया भत्ता देने के लिए किया जाता है! और यह मेरा अनुभव केवल आज के लिए नहीं है! पिछले 13 वर्षों से एक वैज्ञानिक के रूप में कार्य करते हुए मैंने अनेकों केंद्रीय और वैज्ञानिक टीम को रिपोर्ट करते
अतः मुझे यह विश्वास है, कि जैसा कि पहले वैज्ञानिक रिपोर्टों पर कार्यवाही की गई, जैसे कि रिपोर्ट बनाने वाली टीम ने उसको तटस्थ भाव से बनाया और अपने हिस्से का खर्च लेकर रिपोर्ट को फाइल में दबवाना उचित समझा, कोविड-19 के लिए भी उसी प्रक्रिया का अनुपालन किया गया.
आज जब पूरा 1 वर्ष और महामारी का चरम उत्कर्ष प्राप्त हो चुका है, तब इस समय वैज्ञानिक टीम के द्वारा यह कहना कि हमने अपनी रिपोर्ट दी थी इस पर सरकार की वरिष्ठ अधिकारियों ने काम नहीं किया, एक चिंतनीय विषय है. संभव है ये वैज्ञानिक दल के सदस्य किसी वैज्ञानिक भाषा में रिपोर्ट दिए हो जिसको सरकारी बाबुओं और सरकारों को समझना कठिन रहा हो....
इसका भी अनुभव मुझे है.. कारण...एक ही बात को इतने अच्छे तरीके से लिखा जाता है कि उसका कई अर्थ निकल जाता है... 'युधिष्ठिर बुद्धि" भी फेल हो जाती है... "अश्वत्थामा मरो नरो या कुंजरो" से बहुत आगे वैज्ञानिक निकल चुके हैं!
दूसरी बात यदि यह वैज्ञानिक दल इस बात का दावा करते हैं, वे अति स्पष्ट रिपोर्ट सरकारों को सौंप रखें थे, तब सबसे पहले अधिकारी वही है दंड के! आखिर अपनी ही दी हुई रिपोर्ट पर जब समय रहते, अनुपालन नहीं हो रहा था तब, उन्होंने समय रहते कोई कार्यवाही क्यों नहीं की! क्या उन्होंने इस्तीफा देना, मिडिया के सामने अपना वक्तव्य देना या अपने व्यक्तिगत प्रोफाइल से अपनी बात को कहना शुरू किया. बहुत संभव है उन्होंने अपनी वेतन वृद्धि को ज्यादा महत्वपूर्ण समझा, क्योंकि अपने ज्ञान से बनाई हुई महत्वपूर्ण रिपोर्ट का अनुपालन... जिससे कि देश की रक्षा हो सकती थी.
आज बदले हुए परिवेश में शायद परिणाम दिवस पर सरकार पर सीधा आरोप लगाना, यह दर्शाता है कि अब उनकी स्थिति बदल गई है! और अब वे अपनी छिपी हुई ज्ञान शक्ति को स्पष्ट रूप से अखबार में निकाल रहे हैं.
वैसे निश्चित रूप से समाज इन बातों को अपने अपने तरीके से लेगा. मेरा मानना है कि सभी.. मतलब सभी राजनीतिक दलों ने मिलकर कई बार कोरोना क़ो आँख दिखाया है! और जिस भी पार्टी का विजय कही पर भी हो वह पार्टी भी कोरोना क़ो कुछ नहीं समझती!
इसलिए मेरे अनुसार कोरोना महामारी की इस विकराल स्थिति से बाहर निकलने के लिए प्रत्येक व्यक्ति की जो अपनी आत्मशक्ति है और जो संसाधन है वही उपयोगी सिद्ध होने वाले हैं.
अन्य वैज्ञानिक दलों के द्वारा दी गई चिंता और अपना अनुभव यह कहता है कि 15 मई तक प्रतिदिन संक्रमित होने वालों की संख्या, आज प्रतिदिन संक्रमित होने वालों की संख्या से 4 गुना होने की संभावना है, और ऐसी स्थिति में शायद यह लेख लिखने की स्थिति में कोई भी ना रहे...
आज 2 मई है, यदि पूर्ण नियंत्रण से भी संक्रमण को विस्तार देने से बचा गया तब भी यह संख्या तीन गुनी से कम नहीं होगी.
वर्तमान परिस्थितियों में सरकार ने अपनी पूरी ताकत लगा रखी है. और हम सब को पूरा विश्वास है कि अपने द्वारा उत्पादित की गई यह कोविड-19 की दूसरे खेप, की पूरी जिम्मेदारी सभी राजनीतिक दल स्वेच्छा से आत्मसात कर आगे राजनीतिक संभावनाओं को तलाशना बंद कर देंगे...किसानों का आंदोलन सुनिश्चित करना, तथा सभी प्रकार के सामाजिक कार्यक्रमों को पूर्ण छूट देना तथा न छूट दिए जाने पर अन्य राजनीतिक दलों का अपना जोर पुरजोर लगाना.. पूरे वर्ष देखा गया है. कड़ा निर्णय लेने वाले नेतृत्व ने भी बहुत सहजता से बहुत सारी चीजों को स्वीकार किया तथा जनता को यह भरोसा
कोविड-19 के वैक्सीन को भी समय रहते पूरी जनता के लिए उपयुक्त मात्रा में नहीं पहुंचा पाए.
जैसा कि हम सब जानते हैं, प्रकृति के साथ दो-दो हाथ करने की ताकत किसी भी विधा में नहीं है. परंतु
वैज्ञानिक व्यक्ति प्रकृति के साथ शुरू से ही जुड़ कर सीखता है और उसी से दो-दो हाथ करने की क्रिया भी अपने अभ्यास में लाता है! प्रयोगशालाओं में हम सब ने इस बात का अनुभव किया है एक बार कोई बायोलॉजिकल स्ट्रेन अपनी मीडिया से अलग दूसरी मीडिया में पहुंच जाए, औऱ दूसरी स्ट्रेन के कल्चर के साथ अपनी जीवन शक्ति लगा दे.. तब वह कल्चर कॉन्टैमिनेटेड हो जाता है, औऱ फेक दिया जाता है.. डिसकॉर्ड कर दिया जाता है... वैसे बहुत सारे मेरे साथी किसी खास इस ट्रेन को बाहर निकाल कर फिर से कल्चर कर पाने में समर्थ हो पाते.. अपना स्ट्रेन कीमती होता है, लेकिन मीडिया डिस्कार्ड हो जाता है.
आज वैज्ञानिक दृष्टि से यह पूरा विश्व कॉन्टैमिनेटेड है.. और एक वायरल कल्चर के रूप में यह पूरा जगत है.
वायरस का प्रभाव हम सब पर कितना है और कोई भी व्यक्ति कितनी देर तक बचा हुआ है, इसका निर्णय मात्र उस व्यक्ति के वायरल लोड पर निर्भर करता है, और अगर उसकी मीडिया मतलब उसका शरीर वायरस के द्वारा और अवशोषित किए जाने के दौरान, कम पड़ गया या फिर इस लड़ाई क़ो लड़ने के लिए आवश्यक जीवन शक्ति, जिसे आज इम्यूनिटी के तौर पर कहा जा रहा है; अनवरत रूप से काम नहीं करती रही, तब वह शरीर वायरस लोड के कारण, किसी काम का नहीं रह जाता! वाइटल अंगों को अतिरिक्त सुविधा वेंटिलेटर इत्यादि से चलायमान करते रहने से भी मात्र कुछ दिन तक शरीर चल सकता है. इसके बाद मीडिया डिस्कार्ड कर दिया जाता है.
इसका मतलब स्पष्ट है कि जो लड़ाई शुरू हो चुकी है उसका निदान जीवन शक्ति रहते ही हो सकता है. जीवन शक्ति के कम होने पर इस लड़ाई में सिर्फ दिन और संसाधनों के अभाव में एक सूचना प्राप्त होने की बात ही रह जाती है!आप सब समझदार हैं! मुझे लिखने नहीं आता!
हाँ, जीवन शक्ति को आगे बढ़ाने के लिए आयुर्वेद और न्यूट्रीशनल डिपार्टमेंट को आगे बढ़ाना चाहिए! और उनको पूरा नियंत्रण देना चाहिए कि वे अपनी टीम के साथ प्रत्येक परिवार के पोषण की और प्रतिरोधक शक्तियों को बढ़ावा देने वाली मैनेजमेंट दवाओं का बिना किसी रोग के प्रभाव के ही उपयोग सुनिश्चित कराएं.
अगले 15 दिनों तक अगर यह काम किया गया तो मुझे विश्वास है, कोरोना की यह लड़ाई हम जीत जाएंगे.
डॉ० सत्य प्रकाश
वैज्ञानिक, चिकित्सा विज्ञान संस्थान,
काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
MEET शिक्षा कार्यक्रम एवं
वैज्ञानिक सलाहकार, अखिल भारतीय हिंदी महासभा काशी क्षेत्र.