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दोस्तों के लिए


एक डोर बनी थी प्यारी सी टुकडों टुकडों में बिखर गयी! 

कोई इधर गयी कोई उधर गयी कोई मजबूरी में पिघल गयी! 

 

 वो हीरे जैसे यार मेरे मोती बनकर के टूट गये! 

जो चांद जमीं पर रहता था वो आसमाँ से दूर गये! 

 

उन प्यारे प्यारे यारों में एक प्यारी राजकुमारी थी

मैं उसके दिल को प्यारा था वो मेरे दिल को प्यारी थी! 

 

वो कोचिंग वाले दिन भी कितने हसीन कितने प्यारे थे! 

दिन भर मस्ती में पढ़ते थे और शाम ढले अंधियारे थे! 

 

तब दिन दिनकर सा होता था अब दिन दिनभर सा लगता है! 

यारो के जुदा हो जाने से अब मन बंजर सा लगता है! 

 

अब याद करो जो यादे है बस याद याद रह जाती है! 

कच्चे सपनों की नींद बेंच हर शाम गुजर ही जाती है! 

पुनीत मिश्रा