झील का दर्पण

अरुणिता
द्वारा -
0

 








तुझमे ही खोई रहू मैं,

है दिल मेरा कह रहा तुझमे ही खो जाऊ मैं,

एक टक उसे  निहारु मैं,

एक चाँद को चांदनी रात में,

देखूं तेरी परछाई मैं झील के दर्पण में,

ठंडी -ठंडी हवाएं हो,

नदिया भी अपने पूरे वेग में बहे,

थम जाऊ वही मैं,

साँसो को समेट रूह के सिहरन में,

देखूं तेरी परछाई मैं झील के दर्पण में,

बिखरे -बिखरे लटो में तूझे छुपालु मैं,

अपनी उलझी -उलझी बातो से तूझे उलझा दू मैं,

सिमट जाऊ तेरे मन भाव के अर्पण में,

देखूं तेरी परछाई मैं झील के दर्पण में,

ये ख़ामोश रात जब -जब ढलती होंगी,

तब दीवाने दिल की धड़कन और तेज होती होंगी,

ओस की बुँदे जैसे दूब के बदन पर फिसल शर्माती होंगी,

वैसे मैं डूबती गयी उनकी बाहो के समंदर में,

देखूं तेरी परछाई मैं झील के दर्पण में।

प्रिया पाण्डेय "रौशनी "

हूघली, पश्चिम बंगाल

 

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn more
Ok, Go it!