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नई सुबह

 

       एक साठ-सत्तर साल की औरत थी उसके घर में सभी थे । पति, बेटा ,बहू, बेटी और और दो छोटे-छोटे पोता और पोती सब साथ में रहते थे सब कुछ था उनके पास कहे तो भरा पूरा परिवार। जैसा कि आज का युग मोबाइल फोन का है, हर घर में लगभग सभी के पास मोबाइल होता ही होगा। मानो ये छोटी सी मोबाइल सबकी पूरी दुनियां ही समझो।

एक दिन उस बूढ़ी औरत ने भी मोबाइल लेने की ज़िद पकड़ ली। वह अपने पति से ये बात बोली - “मुझे भी एक नया मोबाइल चाहिए |”

उसके पति ने कहा - "अब तुम्हें मोबाइल कि क्या जरूरत आन पड़ी?”

उसने पति से कहा -"मुझे फोन इसलिए चाहिए क्योंकि मै भी दुनिया के साथ चलना चाहती हूं,मै भी खुद को फेसबुक, व्हाट्स ऐप और इंस्टाग्राम पर खुद को देखना चाहती हूं।" यह सुनकर उसके पति को हंसी छूट गई। अपने पति को इस तरह उसपर हंसते देख अच्छा नहीं लगा, फिर भी अपनी बात रखना जारी रखी और बोली कि मै फ़ेसबुक पर अपने पुराने संगी साथी, कुछ बचपन के तो कुछ जवानी के, उन सबको ढूंढ कर उनका हाल समाचार लेना चाहती हूं, और हां मेरे मायके के कुछ रिश्तेदार जो शादी के बाद छूट गए, उन सबसे भी मोबाइल के माध्यम से बातें करना चाहती हूं।

यह सुनकर उसके पति को फिर से हंसी आई और इसबार उसने बोला - "अब तुम्हारी सारी दुनियां मै ही हूं, अब क्या जरूरत उन सबकी"।

वह वहां से उदास हो कर अपने बेटे के पास जाकर वही सब बात फिर से दोहराई, इस पर उसका बेटे ने अपनी माँ से कहा -"क्या माँ तुमको इन सबकी अब क्या जरूरत" अब अपने पोते-पोतियों को संभालो, मन नहीं लगता तो उनके साथ खेलकर अपना मन बहला लो, अब इस उम्र में तुम्हें मोबाइल फोन की क्या जरूरत, वैसे भी तुम्हारे मायके और दोस्तों की तुम्हारी परवाह नहीं तो तुम क्यूँ उन्हें सोशल मीडिया पर ढूंढ कर फालतू का टेंशन ले रही हो, छोड़ो ये सब !

इस बार भी वह निराशा हाथ लिए कुछ उम्मीद के साथ अपनी बेटी के पास गई। वहां भी उसने अपनी बात को दोहराई, उसने सोचा कि बेटी है मेरी शायद मेरी बात और जज्बातों को समझेगी, पर उसका जवाब भी ना ही था, बेटी ने अपनी माँ से कहा -"माँ तुम्हें जिस किसी से बात करनी होती है तो हमलोग करवा ही देते हैं फिर क्यूँ अपने गुजरे वक़्त को अपनी हाथों में पकड़ना चाहती हो "छोड़ो इस ज़िद को! इतना सुनकर वह और भी असहाय महसूस कर रही थी, क्योंकि बेटी दोस्त की तरह होती है और वही उसकी बात को नहीं समझी। अब उस घर में बची उसकी बहू। उसने सोचा ,ये सब तो मेरे अपने थे, जब यही लोग मुझे नहीं समझे तो मेरी बहू तो पराई घर से आई हुई है, ये क्या समझेगी मुझे। वह किचन के दरवाजे से ही वापस अपने कमरे में जाकर रोने लगी, पर वह इस बात से अनजान थी कि उसकी बहू किचन से उसकी सब बात सुन रही थी।

अभी वह रो ही रही थी कि तभी पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखते हुए उसकी बहू ने कहा माँजी अभी चलो बाजार और   अपनी पसंद का एक मोबाइल फोन खरीद लो! यह सुन कर  वो औरत कुछ सकपकाई, कि मेरी बहू ये सब कैसे जानती है , मैंने तो उसे ये बात बताई भी नहीं। अभी यह सब सोंच ही रही थी कि तभी बहू ने उससे कहा -"माँ जी मैंने आपकी सब बात किचनसे सुन रही थी और आपका कहना भी बिल्कुल सही है,मै आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं।हम लड़कियां शादी कर एक नए घर में आती है, फिर एक औरत बन अपने इस नए घर को संभालती हैं वो अपनी पूरी जिंदगी अपने पति बच्चे को देकर अपनी सभी फ़र्ज़ को निभाते है, तो क्या हमारा इतना भी हक़ नहीं बनता कि हम अपनी ज़िंदगी में उनको भी अहमियत दें जिसे हम कब का बहुत पीछे छोड़ चुके हैं।

बहू की यह सब बात सुन कर उस बूढ़ी औरत की आंसू भरी आंखों में एक सुकून कि चमक सी आ गई, उसे लगा कोई तो है जो मुझे और मेरी अहसासो को समझ सकता है। फिर क्या था! वो औरत अपनी मन की बात लगी कहने बिना रूके। उसने बहू से कहा - पता है बहू, स्कूल के दिनों में हम तीन सहेलियां हुआ करती थी, मै, विमला और ज्योति। हम साथ पढ़ते, खेलते मौजमस्ती करते, पता नहीं  अभी कहां होंगी दोनों ,अब इस उम्र में होगी भी की नहीं? ये भी नहीं पता मुझे। कॉलेज के दिनों में भी मेरे कई दोस्त थे उनका भी कोई को खबर नहीं। जब मेरी शादी थी तो परिवार के कई सदस्य, रिश्तेदार, मोहल्ले वाले, जान पहचान के कुछ और लोग भी शामिल हुए थे, पर आज सब कहाँ है कुछ पता नहीं, माँ बाप तो मेरे कब का मेरा साथ छोड़ कर इस दुनियां से चले गए। भाई बहन सब भी बूढ़े हो चले, शायद उनका भी हाल मेरे जैसा ही होगा" कहते-कहते उस औरत का गला फिर से रूंध गया, बहुत बेचैनी थी उसकी एहसासों में। यह सब देख कर बहू कि भी आंखे भर आईं और  उसने मन ही मन ठान लिया कि माँ जी को आज नया मोबाइल फोन लाकर ही दूंगी।

उसने अपनी सास की शांत करवा कर और दिलासा दिला कर चुप करा उन्हें बाज़ार  चलने को कहा

अब बस कुछ ही घंटो में उस बूढ़ी औरत के हांथ में एक नया मोबाइल फोन था, वह उसे बहुत ही खुशियों से उलट पलट कर देखे जा रही थी, मानो उसे कितनी बड़ा धन या ख़ज़ाना मिल गया हो, आज वह बहुत खुश थी। घर वालों ने कुछ विरोध भी किया पर इस बार वो चुप नहीं रही, बल्कि अपनी जायज़ इच्छाओं के नीचे सबकी आवाज़ को दबा जो चुकी थी। अब सब उसे सहस्र स्वीकार कर चुके थे।

जल्द ही उस औरत ने इस आधुनिक युग की नई तकनीक से खुद को रूबरू करवाया । बस उसे लग रहा था कि कैसे सभी भूले बिसरे दोस्तों, रिश्तेदारों को अपनी मुठ्ठी में भर ले। सबसे पहले फेसबुक पर अपनी एक वर्तमान की फोटो के साथ अकाउंट बनाया, इसमें उसकी बहू ने मदद की । फोटो डालते हुए उसने सोचा कि वर्तमान की फोटो डालूं या बीते हुए उन सत्तर साल की चंद्रमा सी घटती और बढ़ती उम्र की पड़ाव की। आखिर मेरे किस चेहरे को मेरे सहपाठी और रिश्तेदार पहचान पाएंगे। आज वो उनसे बहुत दूर आ चुकी थी, उसे लगता शायद ही मुझे कोई पहचान पाए !पर फोटो तो डालना ही पड़ेगा, बहुत सोचने के बाद ही उसने वर्तमान की ही फ़ोटो डाली, बचपन से जवानी की सारी डिटेल के साथ इस उम्मीद से की कोई ना कोई तो पहचान ही लेगा।

   कुछ दिन यूं ही निकाल गए ,वह रोज अपना फेसबुक खोलती और बंद करती ना जाने कितनी बार। किसी को ना पाकर वह बहुत उदास भी होती। उसकी उदासी बहू से छिपी ना रह सकी। फिर उसकी बहू ने उसको मोबाइल फोन की और भी जानकारी से अवगत कराने की कोशिश की, जैसे कि व्हाट्स एप, गूगल, यूट्यूब और ना जाने क्या क्या। अब जाकर वो थोड़ा कम उदास रहने लगी। अचानक से एक दिन उसने अपने बहुत करीबी दोस्त की फ्रेंड रिक्वेस्ट को देखा, चेहरे से तो पहचान नहीं सकी,क्योंकि वो भी शायद उसके जैसा बूढ़ा जो हो गया था, पर नाम उसे जाना पहचाना लग रहा था, फिर उसने उस व्यक्ति का सारा प्रोफ़ाइल चेक की, तब जाकर उसे लगा कि हां ये वही है उसकी बूढ़ी आंखे चमक उठी थी, लग रहा था कि जैसे उससे कुछ खास रिश्ता रहा हो,उम्र के इस पड़ाव पर उसे देखना एक स्वप्न सा प्रतीत हो रहा था। अब तो वह खुशी से झूम उठी,और अपनी खुशी का कारणसबसे पहले अपनी बहू को जाकर बताया, और उस खास दोस्त के बारे में भी।

धीरे धीरे उसकी ज़िन्दगी में लगभग सब शामिल होते चले जा रहे थे जिन्हें वो इन सत्तर सालों में खो चुकी थी अपनी गृहस्थी जीवन को संजोने में। आज वो अपने नए जीवन का आरंभ कर रही थी, पता था उसे की इसकी उम्र कम है पर वो जीवन के बचे पल को अपनी खुशियों के आधार पर जीना चाह रही थी। उसने सोच लिया था जब तक इस शरीर से मै ज़िंदा हूं कभी अपनी आत्मा को मरने नहीं दूंगी। वो सब हासिल करूंगी जिसको मैंने भूत काल के गलियारों में छोड़ आई हूं, वो सखी, दोस्त, करीबी रिश्ते सब। उन सबमें मै खुद को ज़िंदा रखना चाहती हूं। आज वो बहुत खुश थी, और आधुनिक युग की तकनीक को तहे दिल से शुक्रिया कर रही थी, क्योंकि उसी की बदौलत वो नई ज़िन्दगी को पा सकी, और यही तकनीक उस बूढ़ी औरत को दोनों हाथों से अपनी दुनिया में स्वागत कर रही थी। और वो अपनी आधुनिक युग की बहू को भी पूरे दिल से दुआ दे रही थी क्योंकि वो उसकी एहसासों को नहीं समझती तो ये नामुमकिन ही था उसके लिए।

प्रिया सिन्हा

राँची, झारखण्ड