भावनाओं का अथाह सागर,विचारों की अभिव्यक्ति, जीवन जीने की कला सिखाता प्रेम वह रस है जिसमें असीम आनंद की गंगा प्रवाहित होती है, जिसमें डूबकर व्यक्ति कल्पनालोक की सैर करता है। मानव संरचना का आधार प्रेम ही है। प्रेम मनुष्य को जीना सिखाता है।अच्छे गुणों का विकास करता है।प्रेम ही वह शक्ति है जिसने मानव सभ्यता को इतने अनवरत संघर्षों और रक्तपात के पश्चात भी जीवंत रखाहै।
प्रेम की व्याख्या करना बहुत ही मुश्किल है। इसमें जीवन जीने की चाहत छुपी है। कभी इसमें प्यार का विशद संसार छुपा हुआ है तो कभी घृणा का अथाह सागर जिसकी थाह पाना नामुमकिन होता है।यदि प्रेम को आत्मा का
गुण कहा जाए जो एक दूसरे का साथ निभाने की प्रेरणा देता है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी, परंतु यह तब संभव होता है जब प्रेम का स्वरूप सकारात्मक हो।कबीरदास जी प्रेम के विषय में कहते है-
पोथी पढ पढ जग मुआ,पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढे सो पंडित होय ।।
प्रेम के कई पहलू होते है। मनुष्य जब से जन्म लेता है वह प्यार को ही तलाशता है। जन्म लेते ही वह अपने माता पिता, दादा दादी और सभी अपने बडों का प्यार प्राप्त करता है।वह उनसे दूर नहीं जाना चाहता। कुछ बडा होने पर भाई बहनों का प्यार और कुछ बडा होने पर दोस्तों के प्यार के साथ जीना सीखता है। किशोरावस्था से विपरीत जेंडर की ओर आकर्षित होकर नवीन प्रेम पथ पर चल पडता है। यह एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें वह कल्पनालोक में विचरण करने लगता है। रोमानी ख्यालों में खोकर जीना अच्छा लगता है।परंतु जब यथार्थ के धरातल पर आता है तो कभी संवर जाता है तो कभी बिखर जाता है।कबीरदास जी कहते है कि-
घडी चढे,घडी उतरे, वह तो प्रेम न होय।
अघट प्रेम ही हृदय बसे,प्रेम कहिए सोय।।
परंतु आजकल कुछ वर्षों से प्यार का विकृत रूप भी सामने आ रहा है। दूसरे की भावनाओं को समझे बिना ही एकतरफा प्यार में हत्या कर देना, चेहरे पर तेजाब फेंकने जैसी घटनाओं से विकृत मानसिकता का पता चलता है। प्यार तो वह है जो अपने प्यार की खुशी के लिए ताजमहल बनवा दे न कि उसकी जान ले ले। जब प्यार को ईश्वर प्राप्ति का रास्ता बताया गया है तो फिर प्यार में हिंसा क्यों? प्यार तो जीवन जीने की कला सिखाता है तो फिर हिंसक उन्माद क्यों? सबसे दुखद लगता है घर से भागकर अपने परिवार की मान मर्यादा को ताक पर रखकर घर से भाग जाना। वे ऐसा करने से पहले एक बार भी विचार नहीं कर पाते कि क्या कर रहे हैं? उन्हें समझना चाहिए कि परिवार हमेशा अपने बच्चों की खुशी चाहतें हैं।आत्मनिर्भर बनकर आत्मविश्वास के साथ अपने प्यार के साथ जीवन बिताएं और समाज के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत करके प्रेम की गरिमा को बनाए रखें।
प्रेम तो वह सागरहै,जिसकी गहराई नापी न जाए |
वह अनंत आकाश है,जिसकी ऊंचाई छुई न जाए ||
अलका शर्मा
शामली, उत्तर प्रदेश