न चौबारे, न नुक्कड़, न सफ़र में रहो!
वक़्त का तकाज़ा है ज़रा घर में रहो!
हवा कातिल है परिंदो तुम्हें मालूम हो,
अपना कुनबा समेटो शज़र में रहो!
देहरी से न आगें बढ़े ख्वाहिशें,
घर की दीवारो-छत की नज़र में रहो!
रात है आज तो कल सुबह आएगी,
चार दिन आप बस कुछ सबर में रहो!
गिर्द अग्यार है अश्किया ख्वार है,
जंग घर से लड़ो और ज़फर में रहो!
विवेक दीक्षित
राजकीय हाई स्कूल खरझारा
बीघापुर उन्नाव