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घायल की गति घायल जाने

 










घायल की गति घायल जाने

कितनी पीड़ा आधार बताये

वफादारी में सन्ताप रहा है

प्रेम विफल है याद दिलाएं

 

                     निशब्द वचनों की काया जाने

                     जीवन का कोई सार कहाँ है

                     कटु वचनों से हारा ऐसा

                     शत्रु मेरा ये जहां रहा है

 

ओझल ऐसा दिखा न कैसे

रंजिश मे भी बहाव बना है

रिसाव निरंतर बहता है पल पल

कोई तो बोले इलाज वहाँ है

 

                    सिमटा जीवन बुझा हूँ मैं भी

                    सही वो द्वार किस और बना रे

                    बिलख बिलख रोया था ऐसे

                    जैसे नीर भी मानो रुष्ट हुआ है

 

उठा पटक में तन्हाई बिखरी

अपना मेरा संसार बहा है

अंधेरों मे अब वो उजाला न दिखे है

जहाँ अपनाये हमें साथ चला ले

 

पूजा गौतम


दिल्ली