जबसे गए उद्धव संग मथुरा
भूल गए सबको मनमोहन
नहीं कटते निशि वासर तबसे
विरह वेदना व्यथित मन
सजल वाष्प अवरुद्ध कंठ
अपलक पंथ निहारे मन
चहुंओर व्याप्त नीरवता
मूक दृष्टि और मौन कथन
राधा संग वह रास नहीं
गोपियों संग भी हास नहीं
पनघट सूना जलविहीन घट
देखों शिला बनी पनिहारिन
कुसुम उपरि भ्रमर गुंजन
मृदुल किसलय अवचेतन मन
पल्लव पुष्प विहीन हुए वन
अधरों से मुस्कान विलोपन
बांसुरी की मधुर तान नहीं
उर में भी वह उल्लास नहीं
गोधूलि नहीं उडती डगर पर
नहीं संध्या पूजा से सुगंधित पवन
अनंत क्षितिज सदृश प्रतीक्षा
जाने कब पूर्ण होगी ईक्षा
माखन लाखन पंथ निहारे
समाप्त नहीं होती प्रतीक्षा
उद्धव काहे समझ ना पाए
लेकर गए संग प्राण हमारे
अनवरत प्रतीक्षा करते रहते
गोकुल के विरही सब जन