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इश्क तेरा

 












गजब  की है तलब तेरे दीदार की,

आँखें  मूंद ली है,
फिर भी दिखती है सूरत मेरे प्यार की।

होश मे हो कर भी मदहोश  हुए बैठे हैं ,

तेरे इश्क का हीं जाम है,
जो दिल में जगा रही  अरमान तेरे होने की।

गुफ्त्गु तेरे मेरे बीच की दीवार को हटा  रही,
फ़ना कर मुझें दुनियाँ से जुदा कर रही।

तू ना समझ पाए मेरे प्यार को शायद,
क्युंकि  तुम भी वक़्त के  राह चल रहे  बन  राही।

एहसास  मेरे गम  की हो ना हो तुम्हें,
मेरी जिंदगी  तो बस तेरे सांसों  से  हीं चल रही।

सुकून मिलता है तेरी अक्सों से घिरे रहना,
दिल भी आदी हो गया है तेरी ख्यालों में रहना।

नहीं है हमारा  प्यार हीर  राँझा
या लैला  मजनूँ सी,
फिर भी दूनियाँ को एतराज़ है  हमारे मिलन की।

तुम्हें भूलने की कोशिश  बहुत कि मगर,
कोई ना कोई शक्स याद दिला ही देता है तेरी सूरत की।

जो पल बिताएं तेरे साथ,हर लम्हा वो याद रहेगी,
भूलने ना देंगे उन यादों को,
क्योंकि वो खजाना है मेरी तिजोरी  की।

प्रत्यक्ष रूप में न सही,सपनों में ही आ जाया करो
करेंगे कुछ बातें अपनी  तो कुछ  अपनों की।

कभी है सोंचते,ना मिलते हम तो अच्छा था
ले बैठे हैं दर्दे दिल की मुसीबत अपने  विरह  की।

गजब की है तलब तेरे दीदार की,
आँखे मूंद कर भी दिखती है सूरत मेरे प्यार की।

        प्रिया सिन्हा  

राँची, झारखण्ड