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ऑक्सीजन

 

          आज कई दिनों से सेठ की तबियत बिगड़ी थी। वह सेठ नहीं था, उसका नाम सेठ था। गाँव के डाक्टर ने जो उसके पास था, ऐंठा फिर जवाब दे दिया।

          सेठ नजदीक के कस्बा गया। वहाँ भी एक प्राइवेट डाक्टर ने जाँच के बाद कहा, "तुम्हारे पास आक्सीजन की कमी है, तुम जिला अस्पताल जाओ!"

          सेठ ने मन ही मन सोचा कि, 'मौत तो निश्चित है, फिर घर में क्यों नहीं? क्योंकि इस समय बड़ी अस्पतालों में भी आक्सीजन के सिलेंडर नहीं हैं। फिर भी मुझे कोरोना वार्ड में डालकर मार देंगे। पैसे भी नहीं हैं फिर बिना पैसा वाले को कौन देखेगा!"

          परेशान सेठ अपने गाँव यानी घर लौट आया। और तुलसी, गुरिज का काढ़ा पीने लगा।

          सेठ रोज सबेरे चार बजे, गाँव के बाहर एक मंदिर के पास तीन, चार पीपल के पेड़ थे और एक पीपल में चबूतरा भी है। पीपल के पेड़ बहुत पुराने थे।

         चार बजे सुबह से फिर धूप चढ़ आने के बाद करीब घर आठ बजे आ जाता था।

           तीसरे दिन वह स्वस्थ महसूस कर रहा था। उसका शरीर उसे हल्का महसूस हो रहा था।

          सेठ ने संकल्प किया कि, 'मैं भी पेड़ लगाऊँगा!' और उसने एक पीपल का पेड़ रोप भी दिया है।

 

 

 

                                       सतीश "बब्बा"

 कोबरा, चित्रकूट,

उत्तर - प्रदेश