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आँखों को ख़्वाब दीजिए

 हर आंखों को ख़्वाब दीजिए।

बस हौसलों को ताब दीजिए।

 

मुल्क  की  तक़दीर जो बदले,

हर  हाथ को  किताब दीजिए।

 

नफ़रत   मिटे   इस   जहां  से,

मोहब्बत  लाजबाव   दीजिए।

 

हर  उस   नापाक   दिल  को,

बस   बद्दुआ  ख़राब  दीजिए।

 

इस   जहां    में   धोखे   बहुत,

भरोसे  का  अहबाब   दीजिए।

 

हुए  जो  गुनाह  के  सिलसिले,

गुनाहों   का   हिसाब  दीजिए।

 

'अनजाना' लुत्फ़  मुज्जसम ले,

मुस्तकबिल का ख्वाब दीजिए।

 

-महेश अनजाना


 जमालपुर