बोले मोर पपीहा..
सर्दी बीती गरमी बीती
बीता बारिश का महीना
ऐसे में कब आओगे स्वामी
बार बार बस पूछे मेरा मनवा ..
एक दिन आई... पाती देख के
झूम उठा मन मेरा...
धीरे-धीरे खोली पाती
आंसू को अपने रोक न पाती
अबकी न आ पाऊंगा प्रिय मैं
बार्डर पर दुश्मन घूमें...
मां बापू का ध्यान तुम रखना
भाई बहन जो पूछे कहना
छुट्टी मिल न पाई मुझको
अबकी न आयेंगे भईया,
छुट्टी की है मारा मारी
अफ़सर से सब करें शिफारिश
पैसे तुम को भेज दिए है
सोच समझ कर खर्च किए है
मुन्ने का एडमिशन कराना
बहना की शादी करवाना
मेरी चिंता तुम न करना
अपना भी ध्यान तुम रखना
इतना सा बस काम तुम करना
जल्दी ही मैं फिर आ जाऊंगा।
अपने साथ तुम्हें लाऊंगा
बस क्वाटर मिलने तक
प्रिय इंतजार तुम करना...
पत्र लिखना अब बंद करता हूं
बाकी तुम खुद ही समझना।।
-किरन वर्मा
बंगलूरू, कर्नाटक