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बेटियाँ

 सुख वैभव समृद्धि सफलता, प्रगति बेटियाँ हैं।

कभी सेंकती नरम मुलायम, गरम रोटियाँ हैं।

बुद्घि प्रखरता में हैं आगे, ऊर्जा का मण्डार-

भारत के गौरव गिरि की ये, उच्च चोटियाँ हैं।

 

गृह उपवन की कलित सुकोमल, हरित लताएँ हैं।

नवल चाँदनी सी निर्मल ये, चन्द्र कलाएँ हैं।

खुशियों का है रूप बेटियाँ, घर की रौनक हैं।

बेटी हो घर में तो रहती, दूर बलायें हैं।

 

बेटी है तो खुशियाँ घर में, बेटी से त्योहार हैं।

बेटी ही है बहन,बहू,माँ, उसके रूप हजार हैं।

बेटी शक्ति स्वरूपा काली, ज्ञान दायिनी वाणी-

बेटी ही तो जगदम्बा है, महिमा जगत अपार है।

 👉श्या सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'

व्याख्याता-हिन्दी

अशोक उ०मा०विद्यालय

लहार,भिण्ड,म०प्र०