मैं जिस में सब रंग भरूं
क्या वह चित्र बनोगे?
सब कुछ साझा कर सकूं
क्या तुम वह मित्र बनोगे?
मेहनत और पसीने की आए जिससे खुशबू
क्या तुम वह इत्र बनोगे?
अभिमान करू मैं जिसपर
क्या वह चरित्र बनोगे?
कुछ ख्वाइश अपनी भी कह पाऊं
क्या तुम थोड़ा सा रिक्त बनोगे?
कुछ सपने बोने है, दिल की धरती पर
क्या तुम थोड़ा सिक्त बनोगे?
-प्रज्ञा पांडेय
वापी, गुजरात