किसी के पास उलझन क्यों रखेंगे
अगर हम एक टूटा दिल रखे हैं
उसी की भांति दरपन क्यों रखेंगे
रखेंगे हम सनम का मन मगर वो
हमारा मन हुआ मन क्यों रखेंगे
नहीं मिलता सुखद इक अंत जब तक
कथा में हम समापन क्यों रखेंगे
तमाशे का नगर शौक़ीन कितना
बिना जाने प्रदर्शन क्यों रखेंगे
बहारें कर्मयोगी मालियों से
अभी उम्मीद गुलशन क्यों रखेंगे
गले में विष अगर रखना नहीं है
भला फिर माथ चंदन क्यों रखेंगे
सुधन ले जा सकेंगे जब न अपना
किसी का एक भी कन क्यों रखेंगे
उठाये जा रहे हैं चार कांधे
न हो जब रूह तो तन क्यों रखेंगे ||
-केशव शरण
सिकरौल, वाराणसी