Ads Section

नवीनतम

10/recent/ticker-posts

तन क्यों रखेंगे


पड़ेगी और गुंठन क्यों रखेंगे

किसी के पास उलझन क्यों रखेंगे

                      अगर हम एक टूटा दिल रखे हैं

                      उसी की भांति दरपन क्यों रखेंगे

रखेंगे हम सनम का मन मगर वो

हमारा मन हुआ मन क्यों रखेंगे

                       नहीं मिलता सुखद इक अंत जब तक

                        कथा में हम समापन क्यों रखेंगे

तमाशे का नगर शौक़ीन कितना

बिना जाने प्रदर्शन क्यों रखेंगे

                        बहारें कर्मयोगी मालियों से

                        अभी उम्मीद गुलशन क्यों रखेंगे

गले में विष अगर रखना नहीं है

भला फिर माथ चंदन क्यों रखेंगे

                        सुधन ले जा सकेंगे जब न अपना

                        किसी का एक भी कन क्यों रखेंगे

उठाये जा रहे हैं चार कांधे

न हो जब रूह तो तन क्यों रखेंगे ||

-केशव शरण

सिकरौल, वाराणसी