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सियासत

 सियासत में जो बरसों से पड़े हैं

समझ लीजे कि वे चिकने घड़े हैं

                            स इक अपना ही कद है सबसे छोटा

                            तुम्हारी बज़्म में सब कद बड़े हैं

 ज़रूरत है हमें ऐसे ही जन की

जो अन्दर नर्म बाहर से कड़े हैं

                            न लड़ पाओगे ,है दावा हमारा

                            हम अपने वक़्त से जितना लड़े हैं

जड़ें जिनकी बहुत गहराई तक  हैं

शजर  वे  ही  बहुत  ऊँचे  खड़े हैं

धर्मेन्द्र गुप्त

के 3/10 ए. माँ शीतला भवन,

गायघाट, वाराणसी