बस हौसलों से उड़ान होती है।
आप के नाम में कोई बात नही,
काम से आप की पहचान होती है।
अब तो बस दिन के बाद रात होती है।
भूल गए हम सब की कब शाम होती है
जानें कितने शरीफों की शराफ़त की राजदार होती है,
वो लड़की जो शहर भर में बदनाम होती हैं।
हम तो बस अमन के कायल है,
इल्म नहीं की कब आरती और अज़ान होती है।
संभल कर जाना देर रात में घर बेटियों,
मेरे शहर में दरिंदे ज्यादा और सड़के सुनसान होती है।
एक हौसला सा मिल जाता है किसी की बात से,
वरना कहने सुनने से कब मुश्किलें आसान होती हैं।
-प्रज्ञा पांडेय
वापी, गुजरात