खुद से मुलाकात।
मेरा अन्तर्मन बोला,
क्यों तू है परेशान?
ज़िन्दगी के रास्ते,
नही होते आसान।
इसमे फूल कम,
कांटे होते हैं ज्यादा।।
कांटो पर चलकर,
जो संयम बरतते।
वही एक दिन,
फूल सा है खिलते।।
हिम्मत हौसला संग,
लेकर चलते। कितनी
भी आए बाधाएं ,
विचलित नही होते।।
ईर्ष्या द्वेष से दूर रहकर,
मंजिल को तराशते।
सत्य मधुर वाणी से ,
सबका मन जीत लेते।।
सागर की लहरों सा,
शांत हो गया मेरा मन।
जैसे सागर मे आया,
कोई तूफान गया हो छट।।
खुद से खुद को जाना,
अन्तर्मन से स्वयं को पहचाना।
जिंदगी का सफर हो गया आसान,
मंजिल में नही अब कोई व्यवधान।।
-प्रियंका पांडेय त्रिपाठी
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश