पिछले कुछ दिनों से रवि को परेशान देख श्रुति को बड़ी चिंता हो रही थी। वह रोज देख रही थी कि मोबाईल पर एक कॉल आते ही रवि उठ कर एकांत में चला जाता और देर तक बातें करता रहता। चाहकर भी श्रुति की हिम्मत नहीं होती रवि से पूछने की। नारी स्वभाव के कारण श्रुति के मन में बहुत सारे सवाल उठ रहे थे। आशंका से बेचैन हो जाती है श्रुति।
तभी बालकोनी से रवि वापह कमरे में आता है और मोबाईल मेज पर छोड़कर बाथरुम में घुस जाता है। श्रुति लपक कर मोबाईल उठा कर कॉल डिटेल्स चेक करती है। घबड़ाहट में यह सोच उसके हाथ कांपने लगता है कहीं रवि उसकी चोरी न पकड़ ले। किसी नैनी का कॉल देख उसकी पेशानी पे चिंता की लकीर दिखने लगती है। नाग के फन की तरह मन के भीतर शक़ कुलबुलाने लगता है। रवि का नैनी के साथ कोई चक्कर वक्कर तो नहीं। श्रुति ने मोबाईल मेज पर रख दिया। उसको अपना संसार उजड़ता महसूस हुआ। आंख के आंसू रोकते हुए श्रुति किचन में घुस गई।
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उस दिन को याद कर वह सोचने लगी जब रवि से पहली मुलाकात हुई थी और उसने शादी का प्रस्ताव रखते हुए बोला था कि मेरी जिंदगी में कोई और नहीं बस तुम पहली और आख़िरी लड़की हो। और श्रुति खुशी से 'हां ' कह गई।अभी तो एक वर्ष ही हुए हैं शादी को। ये नैनी कहां से आ टपकी। दूसरी औरत उसकी दहलीज पर दस्तक देने की कोशिश कर रही है। और तो और रवि को उसके लिए परेशान देख पक्का यकींन होने लगा जरूर कोई खिचड़ी पक रही है। अचानक तीखी नमक का स्वाद महसूस कर बेसिन का नल खोल पानी से कुल्ला करने लगी। कुछ देर मन को शांत किया और नाश्ता चाय बनाने लगी।
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कई दिनों से श्रुति रवि को देख रही थी। इधर अकसर वह गुमशुम रहने लगा था। खुद में खोया हुआ... जैसे अपने होश में ही न हो। रवि को पहले इतना बेचैन नहीं देखा। हमेशा अपने मन की बात बता देता। हंसना तो जैसे भूल ही गया। बात बात पर झल्ला उठता। टिफ़िन ले जाना भूलने लगा। बालों में बगैर कंघी किए रहने लगा जबकि बालों का संवारना उसको प्रिये रहा है।
रवि की इस हालत को देख कर श्रुति इतनी परेशान नहींं होती अगर नैनी नाम के बारे में नहीं जान गई होती। प्यार का विश्वास जैसे डगमगाने लगा हो। आंखे छलकने को आई। नहींं ..नहीं..! अब तो रवि से पूछना ही पडे़गा। ये नैनी कौन है जो हमारे जीवन में दु:ख का सैलाब लेकर आई है।
उसने देखा रवि औफिस जाने को तैयार हो चुका था। अभी भी रवि मोबाईल कान से लगाए बात कर रहा
गुस्से को दबा श्रुति ने धीरे से कहा -" रवि! आज डाक्टर के पास जाना है। आख़िरी महीना चल रहा है। डिलवरी का डेट बताया जाना है। मन में घबड़ाहट सी हो रही है। डर भी लग रहा है।"
" क्यों? ऐसा क्या हुआ? देखो पहली वार मां बनने पर ऐसा ही होता है। अशांत मन को शांत रखो। बेचैनी किस बात की।" रवि ने कहा।
श्रुति जैसे बुदबुदा उठी -" जैसे तुम पहली वार बाप नहीं बन रहे हो क्या?"
रवि ने चाय पीते हुए कहा -" आं... तुमने कुछ कहा क्या!"
श्रुति का मन हुआ कि पूछे -" किस नैनी को मेरी जान की दुश्मन बना रहे हो। " लेकिन इतना ही बोल पाई -" पता नहीं। ये तो डाॅक्टर से मिलने के बाद ही पता चलेगा।"
रवि उठते हुए श्रुति से कहा -" देखो श्रुति। मुझे एक जरुरी काम है तुम अकेले डॉक्टर से जाकर मिल लो। या फिर आॅफिस से आसिफ गाड़ी लेकर आ जाएगा तुम उसके साथ चली जाना।"
श्रुति ने कहना चाहा -" उसे पता है तुम्हारा जरूरी काम नैनी है। और फिर ऐसे समय में आसिफ का क्या काम? बाप तुम बनोगे या आसिफ।" लेकिन श्रुति इतना भर ही कह पाई -" अगर तुम चलते तो अच्छा होता। क्योंकि तुम्हारा रहना नितांत आवश्यक है रवि।"
करीब करीब रवि झुंझलाते हुए बोला -" तुम बात को समझती क्यों नहीं हो। अच्छा ठीक है। आज भर रुक जाओ। कल चल चलेंगे तुम्हारे साथ। ओ. के.! अभी मैं चलता हूं।" इतना कहकर रवि जाने को होता है। श्रुति बोल उठती है -" अच्छा ठीक है। आसिफ को ही भेज दो। डॉक्टर ने आज डेट दिया है तो जाना ही पड़ेगा।"
रवि ने श्रुति को घूर कर देखा। फिर तेजी से बाहर निकल गया। रवि फिर टिफ़िन लेना भूल गया। श्रुति ने भी छोड़ दिया। रुआंसी सी बैठी रही।
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अभी कुछ देर पहले ही श्रुति डॉक्टर से मिलकर लौटी। दो दिन बाद डॉक्टर ने डिलीवरी का डेट बताया। श्रुति रवि के हाल फिलहाल के व्यवहार को भूल कर नए मेहमान के आने की खुशी में सब भूल गई। कैसा होगा आनेवाला बच्चा। उसकी नन्ही नन्ही हथेलियों को चूम कर असीम सुख की अनुभूति से ही रोमांचित हो उठी। उसकी मासूम किलकारी को सुनकर शायद रवि उस नैनी जैसी चुड़ैल को भूल जाएगा।
फिर श्रुति का मन भटकने लगा। तभी मोबाईल पर कॉल आया। रवि का ही है देख कर श्रुति ने कॉल रिसीव किया। डॉक्टर और डिलीवरी वाली बात रवि को बताने लगी और डिलीवरी के दिन ऑफिस से छुट्टी लेने को कहा। कोई बहाना मत करना रवि। हमारे जीवन में नई खुशियां आने वाली है इसे हम साथ में सेलिब्रेट करेंगे।
"जरूर" - रवि ने जबाब दिया और फोन काट दिया। श्रुति को रवि का व्यवहार अजीब लगा। ना कोई खुशी का इज़हार ना एक्साइटमेंट का भाव। क्या नैनी इतनी इंपॉर्टेंट हो गई है कि हमारा आपस का प्यार, जज़्बात,भावनाओं की कद्र नहीं रही। श्रुति का विश्वास रगों में डगमगाने लगा। सोफे पर बैठ गई। टेबल पर रखा पानी का ग्लास उठाई और पूरा का पूरा एक बार में गटक गई। मन भारी होता देख बिस्तर पर जा कर लेट गई। कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला।
श्रुति को लगा कोई उसे झिंझोड़ रहा है। आंख खुली तो देखा सामने रवि उसे उठा रहा था। देखा हाथ में चाय का कप लिए रवि कह रहा था -" तुम ठीक हो न? लो ये पानी और चाय।" इतना कहकर रवि ने उसे सहारा देकर उठने में मदद की। श्रुति ने पानी पीया। चाय पीते हुए उसने पूछा -" तुम कब आए?"
"एक घंटा पहले आया हूं। तुम्हें सोया पाया तो फिर फ्रेश हुआ और तुम्हारे और अपने लिए गर्मागर्म चाय बना डाली।" इतना कहकर रवि चाय पीने लगा।
"रवि। तुम खुश हो न? नया मेहमान जो आनेवाला है।" सशंकित होकर श्रुति ने पूछा और रवि का रिएक्शन देखने लगी।
रवि ने चाय का कप मेज पर रखा और श्रुति का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा - " ऑफकोर्स। श्रुति! दो दिन बाद आनेवाला बच्चा हमारे प्यार की निशानी है। मैं बहुत खुश हूं और तुम्हारा एहसानमंद भी। क्योंकि तुम हमारे लिए लकी हो।" श्रुति की आंखों में अभी भी रवि का यह रूप समझ में नहीं आया। शक विश्वास पर भारी होता देख श्रुति ने रवि का हाथ अपने चेहरे से लगा लिया। उसकी आंखें आंसूओं से डबडबा गई।
अचानक रवि का मोबाईल पर कॉल आया और उठकर बाहर बैठक रूम में चला गया। श्रुति शक की आग में पुनः पकने लगी।
नियति को मान श्रुति किचन में चली गई। भाग्य को कोसने लगी। जिसने उसके और रवि के बीच नैनी को ला खड़ा किया है।
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अस्पताल में बेड पर श्रुति बेहोश पड़ी थी।
चेहरे पर मास्क लगा हुआ था। पास में नवजात शिशु अपनी दुनियां में खोया हुआ कभी मुस्कुरा रहा था। कभी रोनी सूरत का भाव चेहरे पर आ जा रहा था।
नवजात शिशु को भी कोरोना से सुरक्षा के लिए पतले व झीनी कपड़े से घिरा बॉक्स के अंदर सुला दिया गया।
उसका पदार्पण कोरोना जैसी महामारी के दौर में हुआ। जहां कईयों की जान चली गई। मौत का खेल जारी है। चारों ओर भयावह स्थिति बनी हुई है।
अस्पताल में सभी मास्क लगाए और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ एहतियात बरत रहे थे। सभी स्टाफ, नर्स और डॉक्टर श्रुति को बेटा हुआ है कह खुश नजर आ रहा था। रवि ने मिठाई मंगवा कर सबको बांट दिया। लेकिन श्रुति को बेहोश देख रवि परेशान दिख रहा था।
रवि की हालत देख डॉक्टर ने कहा -" डिलीवरी के कारण शरीर में एनर्जी पॉवर बढ़ाने के लिए एक रिलेक्सेशन की सुई दी गई है जिसके कारण वह गहरी नींद में है। बेहोश सी है लेकिन बेहोश नहीं है। रिलेक्स मि रवि।"
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श्रुति की आंखें खुली। आंखों के सामने रवि को देख चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। रवि का हाथ उसके हाथ में था। पास में नन्हा मेहमान भी अपनी छोटी आंखों से नई दुनियां में पहला आत्मीय भाव के साथ मुस्कुरा रहा था। श्रुति ने देखा नन्हे की ऊंगली पकड़ एक 5 साल की प्यारी बच्ची जिसके चेहरे पर मास्क होने के कारण ठीक से देख नहीं पा रही थी स्पर्श कर रही थी।
एक अनजान बच्ची को उसके बच्चे के साथ हिल मिल करती देख श्रुति प्रश्न भरी नजरों से रवि की ओर देखने लगी। इतने में लड़की ने 'नमस्ते आंटी' कहा। श्रुति ने उसे आशीर्वाद दिया लेकिन कुछ समझ नहीं पा रही थी।
श्रुति को परेशान होता देख रवि ने कहा -" श्रुति ये है नैनी। जिसके लिए तुम परेशान होती रही हो। दरअसल एक दिन दवाई की दुकान पर मैं तुम्हारे लिए दवाई लेे रहा था ये बच्ची रोती हुई मिली। इसकी मां कोरोना से संक्रमित हो अस्पताल में वेंटिलेशन पर जिन्दगी और मौत से जूझ रही थी।
इसके पिता इस हालत में इसकी मां और इस नन्हीं जान को छोड़ कर चला गया। चेहरे पर मास्क भी नहीं था। मां से मिलने को रो रही थी। मैंने इसे मास्क पहनाया। बगल में ही कोरोना संक्रमित लोगों के लिए अस्पताल में व्यवस्था थी। बड़ी मुश्किल से डॉक्टर ने इसे आईसीयू के बाहर शीशे के पीछे मौत से जूझती मां को देखने का परमीशन दिया। इसे मैं अपने घर लाना चाहता था। तुम्हें भी इसके बारे में बताना चाहता था।
"बस कीजिए। ये अनाथ नहीं है। ये हमारे साथ रहेगी। मुझे नहीं पता था आप इतने परोपकारी हैं। मैंने आपको लेकर कितनी ओछी मानसिकता पाल रही थी। आज मैं खुद को आपके सामने बौना महसूस कर रही हूं। आप इस मासूम को लेकर परेशान रहे और मैं आपको लेकर ओछी मानसिकता पाल रही थी। हो सके तो मुझे क्षमा कर दीजिए।"
रवि ने स्वीकार करते हुए कहा -" दोषी तुम नहीं मैं हूं। तुम्हें सच्चाई न बताकर शक की बुनियाद मैंने डाली है। और तुम अंदर ही अंदर इस आंच में जलती रही। पति पत्नी के बीच कोई सिक्रेसी नहीं होनी चाहिए। तभी आपस का विश्वास डगमगाता है। मैं अपनी इस गलती के लिए माफ़ी चाहता हूं। रियली आई एम भेरी भेेरी सॉरी।"
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद रवि अपने साथ श्रुति,नन्हा बच्चा और नैनी को लेकर घर पहुंचा। दरवाजे के बाहर आसिफ गुलदस्ता लेकर स्वागत के लिए खड़ा था। सभी अंदर पहुंचे तो सारा घर सजा सजाया देख खुशी से मुस्कुरा उठे। अपनापन से घर सुखद लगने लगा। श्रुति बहुत खुश लग रही थी। क्योंकि आज नैनी नाम से नहीं साक्षात बगल में खड़ी लक्ष्मी की अनुभूति प्रदान कर रही थी।
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महेश 'अनजाना'
जमालपुर