इस कदर मिलना हो गर मुझसे तो मुलाकात न कर।।
जो कहना सुनना था कह चुके हम।
अब उस मसले पर कोई बात ना कर।।
आज मुदत्तों बाद तेरे आने से मौसम सुहाना हुआ है।
फिर तू कोई दस्ता सुना के अश्कों की बरसात ना कर।।
कल शिकायत भी न कर सकूं मैं तेरे सुलूक की।
तू इतना सितम तो आज मेरे साथ न कर।।
अच्छा बुरा जो भी था गुजर गया।
बीते वक्त की फिर फ़रियाद ना कर।।
यहां अमन चैन है लोगों में है भाईचारा।
तू मजहबी बातो से फिर कोई फसाद न कर।।
जो तेरे पास था तूने दिया जो मुझे लेना था मैंने लिया।
अब तू इस लेने देने का हिसाब ना कर।
अपनी चाह को मन में रख बस खामोश रह।
इस तरह सरे आम जाहिर जज़्बात ना कर।।
-प्रज्ञा पांडेय
वापी, गुजरात