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औरत

 कभी देवी बन पूजी जाती है,

कभी लक्ष्मी बन गृह प्रवेश किया जाता है ।

समय की नोक पर उसे हमेशा ढाला जाता है ।

 

सीता से अग्निपरीक्षा ली,

तो द्रोपदी को जुए में हारा जाता है ।

कैसी विडम्बना है औरतो  का ही इम्तहान लिया जाता है ।

 

आज भी हर मोड पर, हर चौराहे पर

औरतो को ही निशाना बनाया जाता है ।

देख सके कोई दर्द उसका ये कहाँ कभी विचार किया जाता है ।

 

हर नजरो का शिकार औरत को ही चुना जाता है ।

रजस्वला है कह कर जिसे परित्यक्त किया जाता है,

हवन, पूजा से दूर उसे बैठाया जाता है!

 

क्यों भूल जाते हो ,

अपने ही जन्म की व्याख्या |

जिस औरत के रूप को जाकर पूजते हो,

मैं ही हूँ वो कामाख्या |

 

 

रीना अग्रवाल

बरगड, उड़ीसा