न पहले जैसे लोग न पहले जैसी बातें
न पहले जैसा दिन न पहले जैसी रातें
न पहले जैसा खेल न पहले जैसी डांटे
अब वो जिंदगी कहां है?
तारों को देखकर चांदनी की बातें
बहनों से अपने भाईयों की बातें
पापा की डांट और मम्मी के चांटे
अब वो जिंदगी कहां है?
अब सुनता है कौन ? हमारी वो बातें
बहुत याद आती है हमारे बचपन की बातें
बस अब सुनते हैं हम दूसरों की बातें
इस ज़माने में भी ढूंढते हैं हम
उस बीते हुए अपने जमाने की बातें
अब वो जिंदगी कहां है?
वो छोटे से चूल्हे पर खाना पकाना
गुडिया की अपनी शादी रचाना
भईया का मेरी गुड़िया चुराना
और जोर से रोकर मां को बुलाना
अब वो जिंदगी कहां है?
बहुत याद आते हैं वो बचपन के पल
अब मिलते कहां वो बिछड़े जो पल
मन में कहीं दब कर रह जाते हैं पल
अब वो जिंदगी कहां है?
-किरन वर्मा
बंगलूरू, कर्नाटक